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कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
कहाँ इंसाँ कहाँ अक़्ल-ओ-ख़िरद की बेड़ियाँ तौब:ज़रा भी अक़्ल हो तो आदमी दीवान: हो जाए
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
फोल न काग़ज़ बदियाँ वाले दर तों धक न मैनूँ हू ।मैं विच ऐड गुनाह न हुंदे तूँ बख़शेंदों कैनूँ हू ।
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
इतनयाँ डिठयाँ सबर न आवे होर किते वल भज्जां हूमुर्शिद दा दीदार है 'बाहू' लक्ख करोड़ां हज्जाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इश्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हूजित वल वेखां इश्क़ दिसीवे ख़ाली जा न काई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ हो ते इश्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हूसै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
पंजे-महल पंजाँ विच चानण डीवा कित वल धरिये हूपंजे महर पंजे पटवारी हासल कित वल भरिये हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
नैण नैणां वल तुर-तुर तकदे डिठयों बिनाँ डसीवे हूहर ख़ाने विच जानी 'बाहू' किन सिर ओह रखीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जो दम ग़ाफ़ल सो दम काफ़िर मुर्शिद इह फ़रमाया हूमुर्शिद सोहणी कीती 'बाहू' पल विच जा पहुँचाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न सोहणी न दौलत पल्ले क्यूँकर यार मनावाँ हूदुख हमेशा इह रहसि 'बाहू' रोंदी ही मर जावां हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
इतना डठियाँ सब्र नूँ मैं दिल होर कते वल भुजाँ हूमुर्शिद दा दीदार जो 'बाहू' मैनूँ लिख करोड़ां हजाँ हू