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कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हूहू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर भी हू बाहर भी हू'बाहू' कथाँ लुभीवे हूसे रियाज़ ताँ कर कराहाँख़ून जिगर दा पीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
वाहन-लेसोवै.आतिन ज़हबत आँ अहद-ए-हुज़ूर-ए-बारगह-अतजब याद आवत मोहे कर न परत दर्दा वह मदीनः का जाना
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
है यक़ीं उस दिल के हाथों जान एक दिन जाएगीखींच कर मक़्तल में बहर-ए-इम्तिहाँ ले जाएगा
औघट शाह वारसी
कलाम
तू बहार-ए-हुस्न है तेरी नज़र हुस्न-ए-बहारतू नहीं तो ये गुलिस्ताँ का गुलिस्ताँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जो दम ग़ाफ़ल सो दम काफ़िर मुर्शिद इह फ़रमाया हूमुर्शिद सोहणी कीती 'बाहू' पल विच जा पहुँचाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न सोहणी न दौलत पल्ले क्यूँकर यार मनावाँ हूदुख हमेशा इह रहसि 'बाहू' रोंदी ही मर जावां हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मुज-से मरीज़ को तबीब हाथ अपना मत लगाउस को ख़ुदा पे छोड़ दो बहर-ए-ख़ुदा जो हो सो हो