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कलाम
पढ़ पढ़ इलम हज़ार कताबाँ आलिम होए भारे हूहर्फ़ इक इश्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न मैं आलिम न मैं फ़ाज़िल न मुफ़्ती न क़ाज़ी हूना दिल मेरा दोज़ख़ ते ना शौक़ बहिश्ती राज़ी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह दिल यार दे पिच्छे होवे ताँ यार वी कदी पछाणे हूआलिम छोड़ मसीताँ नट्ठे जद लग्गे दिल टिकाणे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जो दम ग़ाफ़ल सो दम काफ़िर मुर्शिद इह फ़रमाया हूमुर्शिद सोहणी कीती 'बाहू' पल विच जा पहुँचाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न सोहणी न दौलत पल्ले क्यूँकर यार मनावाँ हूदुख हमेशा इह रहसि 'बाहू' रोंदी ही मर जावां हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अल्लाह पढ़यों हाफ़िज़ होयों न गया हिजाबों पर्दा हूपढ़ पढ़ आलिम फ़ाज़िल होयों तालिब होयों ज़र दा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अल्लाह पढ़यों हाफ़िज़ होयों न गया हिजाबों पर्द: हूपढ़ पढ़ आलिम फ़ाज़िल होयों तालिब होयों ज़र्दा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
नाँ रब्ब अर्श मुअ'ल्ला उत्ते न रब्ब ख़ाने-काबे हूना रब्ब इलम किताबीं लब्भा, न रब्ब विच महाराबे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
खुली आँखों से आलम पर गुमान-ए-आलम-ए-दिल हैजब आँखें बंद करता हूँ नज़र वो दिल में आते हैं