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कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जो दम ग़ाफ़ल सो दम काफ़िर मुर्शिद इह फ़रमाया हूमुर्शिद सोहणी कीती 'बाहू' पल विच जा पहुँचाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न सोहणी न दौलत पल्ले क्यूँकर यार मनावाँ हूदुख हमेशा इह रहसि 'बाहू' रोंदी ही मर जावां हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हर-दम याद रखें हर वेले सोहणा उठांदा बहान्दा हूआपे समझ समझेंदा 'बाहू' आप आपे बिन जान्दा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न ख़ुश आता है सहरा और न दिल बस्ती में लगता हैये कैसी कश्मकश में जान है और कैसी मुश्किल है
औघट शाह वारसी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़