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कलाम
नोक-ए-मिज़ा-ए-यार है नश्तर के बराबरख़ूँ-रेज़ी में अबरू भी है ख़ंजर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
'ज़हीन' अल्लाह को मैं देखता हूँ हुस्न-ए-जानाँ मेंनज़र ख़ुर्शीद के जल्वे मह-ए-कामिल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
दीदः-ओ-दिल बहम हैं एक सूझ में और बूझ मेंआँखों के सामने अयाँ दिल में बसा जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम का सामना 'औघट' न क्यूँ कर होकि राह-ए-इश्क़ में ये मरहले हैं पहली मंज़िल के
औघट शाह वारसी
कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
हुस्न-ए-मुस्तग़ना की हम ने बात रख ली ऐ 'ज़हीन'वर्ना इश्क़-ए-बे-ग़रज़ को इल्तिजा क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
क्यूँ कर न रखूँ यार के मिलने की तमन्नादिल आरज़ू-ए-वस्ल से नाचार है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
हुस्न के चर्चे उस के दम से रौनक़-ए-आलम उस के क़दम सेनूर के साँचे में क़ुदरत ने उस को कुछ ऐसा ढाला है
कामिल शत्तारी
कलाम
दो-जहाँ जल्वा-ए-जानाँ के सिवा कुछ भी नहींहम ने कुछ और न देखा तो ख़ता कुछ भी नहीं''