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कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल केइरादा है कि रोएँ ईद के दिन भी गले मिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
क्यूँ कर न रखूँ यार के मिलने की तमन्नादिल आरज़ू-ए-वस्ल से नाचार है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
जीवंदयाँ मर रहणा होवे ताँ देस फ़कीराँ बहिये हूजे कोई सुट्टे गुद्दड़ कूड़ा वांग अरूड़ी रहिए हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
भर के दामन रोज़ ले जाता है वो चुन चुन के फूलक्यूँ पकड़ के बाग़बाँ गुलचीं का दामाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
वो दिल पर मेरे धर के हाथ उफ़ कर के लगा कहनेहुआ है इश्क़ की गर्मी से तेरा दिल तो अँगारा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
सुण फ़रियाद पीराँ दिआ पीरा अरज़ सुणी कन धर के हूबेड़ा अड़या विच कपराँ दे जिथ मच्छ न बैहन्दे डर के हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ौज थी वानेर की होर भीड़ थी लंगूर कीमिल के सब लड़ते थे सुब्ह-ओ-शाम सीता वास्ते
शाह तुराब अली दकनी
कलाम
दो-जहाँ जल्वा-ए-जानाँ के सिवा कुछ भी नहींहम ने कुछ और न देखा तो ख़ता कुछ भी नहीं''
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
इश्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हूजित वल वेखां इश्क़ दिसीवे ख़ाली जा न काई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
हुस्न के चर्चे उस के दम से रौनक़-ए-आलम उस के क़दम सेनूर के साँचे में क़ुदरत ने उस को कुछ ऐसा ढाला है