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कलाम
एक नज़र में जिस ने लाखों को किया बे-होश-ओ-मस्तदेखने वाला हूँ मैं उस नर्गिस-ए-मख़मूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
चिल्हे, चलिये, जंगल भौणा, इस गल्ल थीं न पक्के हूसभ मतलब हो जांदे हासिल जद पीर नज़र इक तक्के हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
है यक़ीं उस दिल के हाथों जान एक दिन जाएगीखींच कर मक़्तल में बहर-ए-इम्तिहाँ ले जाएगा
औघट शाह वारसी
कलाम
खुली आँखों से आलम पर गुमान-ए-आलम-ए-दिल हैजब आँखें बंद करता हूँ नज़र वो दिल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
'ज़हीन' आसूदगी राह-ए-तलब में है ज़ियाँ-कारीहज़ारों कोस हैं वो दूर जो एक लम्ह: सुस्ताए
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
दीदः-ओ-दिल बहम हैं एक सूझ में और बूझ मेंआँखों के सामने अयाँ दिल में बसा जो हो सो हो