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कलाम
दिल यहाँ भी मुब्तला-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ हो गयाख़ान:-ए-अहबाब भी 'औघट' को ज़िंदाँ हो गया
औघट शाह वारसी
कलाम
एह दिल यार दे पिच्छे होवे ताँ यार वी कदी पछाणे हूआलिम छोड़ मसीताँ नट्ठे जद लग्गे दिल टिकाणे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
परेशाँ क्यूँ न हो दुखता हुआ दिल सैर-ए-गुलशन सेकि अहल-ए-दर्द सुन सकते नहीं नाले अनादिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
मिटाएँ सब्र दिल से सब्र की तल्क़ीन फ़रमाएँसुकून-ए-दिल वही छीनें वही तस्कीन फ़रमाएँ
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
होर दवा ना दिल दी कारी कलमा दिल दी कारी हूकलमा दूर ज़ंगार करेंदा कलमे मैल उतारी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ हो ते इश्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हूसै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
ज़े-ज़बानी हर कोई पढ़दा दिल दा कलमा कोई हूजित्थे कलमा दिल दा पढ़िए मिले ज़बां न ढोई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
दिल जिस की मोहब्बत में गिरफ़्तार है मेरावो दुश्मन-ए-जानी ओ दिल-आज़ार है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
अक्खीं सुर्ख़ मुँही ज़र्दी हर वल्लों दिल आहींं हूम्हाँ महाड़ ख़शबोई वाला पहुंता वंज किदाईं हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
ये दिल है वो मकाँ जो ला-मकाँ वाले की मंज़िल हैवो लैला है इसी में ये उसी लैला का महमिल है
औघट शाह वारसी
कलाम
शुस्त-ओ-शू ज़ाहिर बदन की क्या बहुत करता है शैख़साफ़ रख दिल को ज़रा वस्वास-ए-शैताँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
ख़ाम की जाणन सार फ़क़र दी महरम नहीं दिल दे हूआब मिट्टी थीं पैदा होए खामी भांडे गिल्ल दे हू