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कलाम
दीन और दुनिया के झगड़े से जो दी मुझ को नजातये बड़ा ऐ हज़रत-ए-इश्क़ आप ने एहसाँ किया
औघट शाह वारसी
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
किया बे-घाट है 'औघट' जनाब-ए-शाह-'वारिस' नेसमझ में ख़ुद नहीं आती है ऐसी अपनी मंज़िल है
औघट शाह वारसी
कलाम
शाह अली शेर-अल्ला वांगण वड्ढ कुफ़र नूँ सुटया हूदिल साफ़ी ताँ होवे जे कर कलमा लुँ-लूँ रसया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
दिल काले तों मुँह काला चंगा जे कोई उस नूँ जाणे हूमुँह काला दिल अच्छा होवे ताँ दिल यार पछाणे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इल्मों बाझ जे फ़क़र कमावे, काफ़िर मरे दीवाना हूसै वर्हयाँ दी करे इबादत अल्लाह थीं बेगाना हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
दीदः-ओ-दिल बहम हैं एक सूझ में और बूझ मेंआँखों के सामने अयाँ दिल में बसा जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
एह दिल हिजर फ़िराक़ों सड़या एह दम मरे न जीवे हूसच्चा राह मोहम्मद वाला जैं विच रब्ब लुभीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जित्थे हू करे रौशनाई छोड़ अंधेरा वैंदा हूमैं क़ुर्बान तिनाँ तोंं 'बाहू' जो हू सहीह करेंदा हू