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कलाम
बे-अदबाँ न सार अदब दी गए अदब थीं वांजे हूजेहड़े होण मिट्टी दे भांडे कदी न थीवण कांजे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना पहला अदब है शर्त-ए-अव्वल बज़्म-ए-जानाँ मेंजो अपने आप से गुज़रें वो इस महफ़िल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
बुलाया पहले मक़्तल में किया है ज़ब्ह ख़ुद मुझ कोक़यामत तक न भूलूँगा ये एहसाँ अपने क़ातिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
मेरे मह-जबीं ने ब-सद-अदा जो नक़ाब रुख़ से उठा दियाजो सुना न था कभी होश में वो तमाशा मुझ को दिखा दिया
औघट शाह वारसी
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
कर इबादत पच्छोतासें उमराँ चार दिहाड़े हूथी सौदागर कर लै सौदा जाँ तक हट्ट न ताड़े हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
दीदः-ओ-दिल बहम हैं एक सूझ में और बूझ मेंआँखों के सामने अयाँ दिल में बसा जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
फ़ौज थी वानेर की होर भीड़ थी लंगूर कीमिल के सब लड़ते थे सुब्ह-ओ-शाम सीता वास्ते
शाह तुराब अली दकनी
कलाम
'ज़हीन' इस दहर में है मद्द-ओ-जज़्र-ए-ज़िंदगी उस सेमोहब्बत साज़-ए-दिल पर जिन सुरों से गुनगुनाई है
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
सब से तन्हा सब में शामिल हुस्न-ओ-मोहब्बत दोनों हैंकितने आसाँ कितने मुश्किल हुस्न-ओ-मोहब्बत दोनों हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
ज़िंदगी का अव्वल-ओ-आख़िर थी वो पहली नज़रइब्तिदा से क्या तअ'ल्लुक़ इंतिहा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
वही पहला तबस्सुम आज तक है हुस्न के लब परवही पहली फ़ुग़ान-ए-इशक़ है जिस से जहाँ बदला
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
दिल जिस की मोहब्बत में गिरफ़्तार है मेरावो दुश्मन-ए-जानी ओ दिल-आज़ार है मेरा