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कलाम
इस दर की सख़ावत क्या कहिए ख़ाली न गया मंगता कोईमुहताज यहाँ जो आते हैं वो झोलियाँ भर के जाते हैं
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
लिख हज़ार किताबाँ पढ़ के दानिश-मंद सदीवे हूनाम फ़क़ीर तहें दा 'बाहू' क़ब्र जिन्हाँ दी जीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हूहू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल केइरादा है कि रोएँ ईद के दिन भी गले मिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
फैला हुआ है दामन-ए-रहमत कितनी ख़ुश-क़िस्मत है ये उम्मतसारे गुनहगारों पर उस ने कमली का पर्द: डाला है
कामिल शत्तारी
कलाम
'ज़हीन' इस में ख़ुद उन के हुस्न-ए-कामिल की इहानत हैभला वो और मेरे इश्क़ की तौहीन फ़रमाएँ
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
यही देखा तमाशा जा के हम ने बज़्म-ए-जानाँ मेंकहीं लाश: तड़पता है किसी जा रक़्स-ए-बिस्मिल है
औघट शाह वारसी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
हर-चंद गुलिस्ताँ में गुल-अंदाम बहुत हैंख़ुश-क़द नहीं कोई सर्व-ओ-सनोबर के बराबर