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कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
एह दिल हिजर फ़िराक़ों सड़या एह दम मरे न जीवे हूसच्चा राह मोहम्मद वाला जैं विच रब्ब लुभीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह दिल यार दे पिच्छे होवे ताँ यार वी कदी पछाणे हूआलिम छोड़ मसीताँ नट्ठे जद लग्गे दिल टिकाणे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न सोहणी न दौलत पल्ले क्यूँकर यार मनावाँ हूदुख हमेशा इह रहसि 'बाहू' रोंदी ही मर जावां हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
किस तरह ब-ईं हाल उसे यार मैं जानूँनादानी से ये वह्म-ओ-पिन्दार है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न सौवें न सौवण देवे सुत्याँ आण जगावे हूमैं क़ुर्बान हाँ उस दे जेहड़ा विछड़े यार मिलावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
ग़फ़लत थीं न खुलसन पर्दे दिल जाहिल बुत-ख़ाना हूमैं क़ुर्बान तिन्हाँ तों जिन्हाँ मिलिया यार यगाना हू