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कलाम
मैं कोझी मेरा दिलबर सोहणा, क्यूँकर उस नूँ भावा हूविहड़े साडे वड़दा नाहीँ लक्ख वसीलें पावाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
दीन-ओ-ईमाँ नज़्र दे के महफ़िल-ए-जानाँ से हमदिल के दिल ही में रहे अरमाँ ये हसरत ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
मैं शम-ए-फ़रोज़ाँ हूँ मैं आतिश-ए-लर्ज़ां हूँमैं सोज़िश-ए-हिज्राँ हूँ मैं मंज़िल-ए-परवानः
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
काने कप कप क़लम बनावन लिख न सक्कन कलमः हू'बाहू' कलमः मैनूँ पीर पढ़ाया ज़रा न रहीयाँ अलमाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
क्या आब है क्या ताब है ऐ जौहरी आ देखआँसू हैं मिरे लाल-ओ-गौहर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
तू बहार-ए-हुस्न है तेरी नज़र हुस्न-ए-बहारतू नहीं तो ये गुलिस्ताँ का गुलिस्ताँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
खुली आँखों से आलम पर गुमान-ए-आलम-ए-दिल हैजब आँखें बंद करता हूँ नज़र वो दिल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू