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कलाम
ज़िंदगी का अव्वल-ओ-आख़िर थी वो पहली नज़रइब्तिदा से क्या तअ'ल्लुक़ इंतिहा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
शौक़ दा दीवा बाल हनेरे मत लब्भे वस्त खड़ाती हूमरन थीं अग्गे मर रहे जिन्हाँ हक़ दी रमज़ पछाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
क़हर पूए ईह रहज़न दुनियाँ हक़ दा राह मरेंदी हूआशिक़ मूल क़ुबूल नून बाहो ज़ारो ज़ार रोएंदी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जिस हादी थीं नहीं हिदायत ओह हादी की फड़ना हूसिर दित्तियां हक़ हासल होवे मौतों मूल न डरना हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
शौक़ दा देवा बाल अंधेरे मताँ लब्भे वस्त खड़ाती हूमरण थीं उगे मर रहे जिन्हाँ हक़ दी रम्ज़ पछाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जिन्हाँ हक़ न हासल कीता दोहीं जहानी उजड़े हूआशिक़ ग़रक़ होवे विच वहदत वेख तिन्हाँ दे मुजरे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना पहला अदब है शर्त-ए-अव्वल बज़्म-ए-जानाँ मेंजो अपने आप से गुज़रें वो इस महफ़िल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
हिक-पल मूल आराम न आए रात-दिने कुरलांदे हूजिन्हाँ अलिफ़ सही कर पढ़या, वाह नसीब तिन्हाँ दे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे