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कलाम
ये मज़ाहिर ये मनाज़िर हेच हैं तेरे बग़ैरहाँ ये जन्नात-ए-नईम-ओ-रुह-ओ-रैहाँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जब 'वारिस' शाह कहलाया ने तब रूह सूँ रूह मिलाया नेतब सेज सुहाग सुलाया ने जीव-जान मख़्ज़न असरार होया
वारिस शाह
कलाम
मज़हबाँ दे दरवाज़े उच्चे राह रब्बाना मोरी हूपंडत ते मुलवाणे कोलों छुप छुप लंघिये चोरी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हूआब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
राह फ़क़र दा तद लधोसे जद हथ फड़योसे कासा हूतरक दुनिया तौ तद थ्योसे जद फ़क़ीर मिलयोसे ख़ासा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह दिल हिजर फ़िराक़ों सड़या एह दम मरे न जीवे हूसच्चा राह मोहम्मद वाला जैं विच रब्ब लुभीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
लैला ख़ल्वत में कहे थी हँस के मजनूँ से यहीबैठ रह दर पर मिरे जंगल बयाबाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह नुक़्ता जग पुख़्ता कीता ज़ाहर आख सुणाया हूमैं ताँ भुल्ली वैंदी 'बाहू' मुर्शिद राह विखाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
राह फ़क़र दा परे परेरे, ओड़क कोई न दिस्से हून उथ पढ़न पढ़ावण कोई न उथ मसले क़िस्से हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
'ज़हीन' आसूदगी राह-ए-तलब में है ज़ियाँ-कारीहज़ारों कोस हैं वो दूर जो एक लम्ह: सुस्ताए
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम का सामना 'औघट' न क्यूँ कर होकि राह-ए-इश्क़ में ये मरहले हैं पहली मंज़िल के
औघट शाह वारसी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू