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कलाम
अज़ल अबद नूँ सही कीतोसे वेख तमाशे गुज़रे हूचोदाँ तबक़ दिले दे अंदर आतश लाए हुजरे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
सुकून-ए-हुस्न जाने इज़्तिरार-ए-इश्क़ क्या शय हैतलव्वुन क्या है उस को साहब-ए-तम्कीन फ़रमाएँ
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
हिक-पल मूल आराम न आए रात-दिने कुरलांदे हूजिन्हाँ अलिफ़ सही कर पढ़या, वाह नसीब तिन्हाँ दे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मोहब्बत से हर इक शय में हुए आसार-ए-शय पैदामोहब्बत की ख़ुदाई है मोहब्बत ही ख़ुदाई है
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
कलमे नाल मैं नहाती धोती कलमे नाल व्याही हूकलमा मेरा पढ़े जनाज़ा कलमे गोर सुहाई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
शुस्त-ओ-शू ज़ाहिर बदन की क्या बहुत करता है शैख़साफ़ रख दिल को ज़रा वस्वास-ए-शैताँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू