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कलाम
मुज-से मरीज़ को तबीब हाथ अपना मत लगाउस को ख़ुदा पे छोड़ दो बहर-ए-ख़ुदा जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
सब कुछ मैनूँ पया सुणीवे जो बोले माशा-अल्लाह हूदर्द-मंदाँ एह रम्ज़ पछाती बे-दर्दां सिर खल्ला हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
नोक-ए-मिज़ा-ए-यार है नश्तर के बराबरख़ूँ-रेज़ी में अबरू भी है ख़ंजर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
काने कप कप क़लम बनावन लिख न सक्कन कलमः हू'बाहू' कलमः मैनूँ पीर पढ़ाया ज़रा न रहीयाँ अलमाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इतना डठियाँ सब्र नूँ मैं दिल होर कते वल भुजाँ हूमुर्शिद दा दीदार जो 'बाहू' मैनूँ लिख करोड़ां हजाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
सुण फ़रियाद पीरां दिआ पीरा आख सुणावाँ कैनूँ हूतैं जेहा मैनूँ होर न कोई मैं जेहियाँ लक्ख तैनूं हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद मैनूँ हज्ज मक्के दा रहमत दा दरवाज़ा हूकराँ तवाफ़ दुआले क़िबले हज्ज होवे नित्त ताज़ा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
कहानी में तसलसुल है न मौज़ूँ है कोई क़िस्साफ़साने भी परेशाँ हैं हमारे मुज़्तरिब दिल के