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कलाम
किया बे-घाट है 'औघट' जनाब-ए-शाह-'वारिस' नेसमझ में ख़ुद नहीं आती है ऐसी अपनी मंज़िल है
औघट शाह वारसी
कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
मेरा गरचे 'औघट' नाम है पर करम है 'वारिस'-ए-पाक काज़हे-शान दम में ग़नी किया कि गदा से शाह बना दिया
औघट शाह वारसी
कलाम
जिन्हाँ शौह अलिफ़ थीं पाया फोल क़ुरआन न पढ़दे हूमारन दम मोहब्बत वाला दूर होयो न पर्दे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर भाई अंदर बालण अंदर दे विच धूहाँ हूशाह-रग थीं रब्ब नेड़े लद्धा इश्क़ कीताम जद सूहाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जब 'वारिस' शाह कहलाया ने तब रूह सूँ रूह मिलाया नेतब सेज सुहाग सुलाया ने जीव-जान मख़्ज़न असरार होया
वारिस शाह
कलाम
शाह अली शेर-अल्ला वांगण वड्ढ कुफ़र नूँ सुटया हूदिल साफ़ी ताँ होवे जे कर कलमा लुँ-लूँ रसया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मैं दिल विच्चों है शौह पाया लोकीं जाण मदीने हूकहे फ़क़ीर 'मीराँ दा 'बाहू' अंदर दिलाँ ख़ज़ीने हू