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कलाम
मिटाएँ सब्र दिल से सब्र की तल्क़ीन फ़रमाएँसुकून-ए-दिल वही छीनें वही तस्कीन फ़रमाएँ
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जिस हादी थीं नहीं हिदायत ओह हादी की फड़ना हूसिर दित्तियां हक़ हासल होवे मौतों मूल न डरना हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल केइरादा है कि रोएँ ईद के दिन भी गले मिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
शौक़ दा देवा बाल अंधेरे मताँ लब्भे वस्त खड़ाती हूमरण थीं उगे मर रहे जिन्हाँ हक़ दी रम्ज़ पछाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हुस्न के चर्चे उस के दम से रौनक़-ए-आलम उस के क़दम सेनूर के साँचे में क़ुदरत ने उस को कुछ ऐसा ढाला है
कामिल शत्तारी
कलाम
यही देखा तमाशा जा के हम ने बज़्म-ए-जानाँ मेंकहीं लाश: तड़पता है किसी जा रक़्स-ए-बिस्मिल है
औघट शाह वारसी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
हर-चंद गुलिस्ताँ में गुल-अंदाम बहुत हैंख़ुश-क़द नहीं कोई सर्व-ओ-सनोबर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
दो-जहाँ जल्वा-ए-जानाँ के सिवा कुछ भी नहींहम ने कुछ और न देखा तो ख़ता कुछ भी नहीं''
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
सुण फ़रियाद पीराँ दिआ पीरा अरज़ सुणी कन धर के हूबेड़ा अड़या विच कपराँ दे जिथ मच्छ न बैहन्दे डर के हू