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कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
मेरे बन्ने की बात न पूछो मेरा बन्ना हरियाला हैख़ुसरव ख़ूबाँ सरवर-ए-आलम ताज शफ़ाअत वाला है
कामिल शत्तारी
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ज़ाहर वेखां जानी ताईं नाले अंदर सीने हूबिरहों मारी नित फ़िरां मैं हस्सण लोक नाबीने हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
ख़ुदी के जौहर आसानी में इंसाँ पर नहीं खुलतेहम अपने सामने खुल कर फ़क़त मुश्किल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
एह नुक़्ता जग पुख़्ता कीता ज़ाहर आख सुणाया हूमैं ताँ भुल्ली वैंदी 'बाहू' मुर्शिद राह विखाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
शुस्त-ओ-शू ज़ाहिर बदन की क्या बहुत करता है शैख़साफ़ रख दिल को ज़रा वस्वास-ए-शैताँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू