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कलाम
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
शुस्त-ओ-शू ज़ाहिर बदन की क्या बहुत करता है शैख़साफ़ रख दिल को ज़रा वस्वास-ए-शैताँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
शाह अली शेर-अल्ला वांगण वड्ढ कुफ़र नूँ सुटया हूदिल साफ़ी ताँ होवे जे कर कलमा लुँ-लूँ रसया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
क्या आब है क्या ताब है ऐ जौहरी आ देखआँसू हैं मिरे लाल-ओ-गौहर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
न रोता है न हँसता है न कुछ कहता न सुनता हैशराब-ए-इश्क़-ए-लैला से हुआ मदहोश यकबारा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
ज्ञान में गुनवन्त था होर ध्यान में था परम-रूपक्यूँ किया ज्ञानी हो कार-ए-ख़ाम सीता वास्ते
शाह तुराब अली दकनी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू