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कलाम
गुड़िया खेलन माँ के घर गई नहि खेलन को दाँव रेगुड़िया खिलौना ताक हि में रह गए नहीं खेलन को दाँव रे
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
मुझे पी अपने को लियाओ रे या मुझ सूँ पी पहुँचाओ रेये अगन फ़िराक़ बुझाओ रे सब तन-मन जल अंगार होया
वारिस शाह
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
कुन-फ़-यकून जदोका सुणया, डिट्ठा ओह दरवाज़ा हूमुर्शिद सदा हयाती वाला ओह ख़िज़र ते ख़्वाजा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
लैला ख़ल्वत में कहे थी हँस के मजनूँ से यहीबैठ रह दर पर मिरे जंगल बयाबाँ छोड़ दे