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कलाम
अंदर भाई अंदर बालण अंदर दे विच धूहाँ हूशाह-रग थीं रब्ब नेड़े लद्धा इश्क़ कीताम जद सूहाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जिस मंज़ूल नूँ इश्क़ पहुँचावे, ईमान ख़बर न कोई हूइश्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ हो ते इश्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हूसै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ इश्क़ माही दे कोलों फिरन हमेशा खीवे हूजींदे जान माही नूँ डित्ती दोहीं जहानीं जीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इश्क़ माही दे लाइयाँ अग्गीं लग्गी कौण बुझावे हूमैं की जाणाँ ज़ात इश्क़ जो दर दर जा झुकावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इश्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हूजित वल वेखां इश्क़ दिसीवे ख़ाली जा न काई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
ईमान सलामत हर कोई मंगे इश्क़ सलामत कोई हूजिस मंज़ल नूँ इश्क़ पहुँचावे ईमान ख़बर न कोई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इश्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हूहर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जिन्हाँ इश्क़ हक़ीक़ी पाया मूँहों ना अलावत हूज़िकर फ़िकर विच रहण हमेशा दम नूँ क़ैद लागवन हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
मुर्शिद मक्का तालिब हाजी काबा इश्क़ बणाया हूविच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
राह फ़क़र दा तद लधोसे जद हथ फड़योसे कासा हूतरक दुनिया तौ तद थ्योसे जद फ़क़ीर मिलयोसे ख़ासा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इन्दर कलमः कल-कल करदा इश्क़ सिखाया कलमः हूचोदाँ तबक़े कलमे अंदर छड किताबाँ अलमाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जद दा मुर्शिद कासा दितड़ा तद दी बेपरवाही हूकी होया जे रातीं जागें मुर्शिद जाग न लाई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इक निगाह जे आशिक़ वेखे, लख हज़ाराँ तारे हूलक्ख निगाह जे आलिम वेखे किसे न कद्धी चाढ़े हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
वो दिल पर मेरे धर के हाथ उफ़ कर के लगा कहनेहुआ है इश्क़ की गर्मी से तेरा दिल तो अँगारा