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कलाम
दीन और दुनिया के झगड़े से जो दी मुझ को नजातये बड़ा ऐ हज़रत-ए-इश्क़ आप ने एहसाँ किया
औघट शाह वारसी
कलाम
चढ़ चनना ते कर रौशनाई ज़िकर करेंदे तारे हूगलियाँ दे विच फिरन निमाणे लालाँ दे वणजारे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
काने कप कप क़लम बनावन लिख न सक्कन कलमः हू'बाहू' कलमः मैनूँ पीर पढ़ाया ज़रा न रहीयाँ अलमाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हिक्क-दम मैथों जुदा न होवे दिल मिलणे ते आया हूमुर्शिद ऐन हयाती 'बाहू' लूँ लूँ विच्च समाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न उत्थ इश्क़ मोहब्बत काई न उत्थ कौन-मकानी हुऐनों-ऐन थीयोसे 'बाहू' सिर्र वहदत सुबहानी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जित्थे वेखण चंगा चोखा पढ़न कलाम सवाई हू ।दोहीं जहानीं मिट्ठे जिन्हाँ साधी वेच कमाई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
ज़ाहर बातिन ऐन-अयानी हू हू पया सुणीवे हूनाम फ़क़ीर तिन्हाँ दा 'बाहू' क़बर जिन्हाँ दी जीवे हू