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कलाम
परेशाँ क्यूँ न हो दुखता हुआ दिल सैर-ए-गुलशन सेकि अहल-ए-दर्द सुन सकते नहीं नाले अनादिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
बहारें फ़र्श हो हो कर बिछी जाती हैं गुलशन मेंउरूस-ए-सुबह-ए-गुल हो कर जवानी मुस्कुराई है
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
दीन और दुनिया के झगड़े से जो दी मुझ को नजातये बड़ा ऐ हज़रत-ए-इश्क़ आप ने एहसाँ किया