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कलाम
नाल नज़ारे रहमत वाले खड़ा हज़ूरों पाले हूनाम फ़क़ीर तिसे दा 'बाहू' घर विच यार विखाले हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद मैनूँ हज्ज मक्के दा रहमत दा दरवाज़ा हूकराँ तवाफ़ दुआले क़िबले हज्ज होवे नित्त ताज़ा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
नाल नज़ारे रहमत वाले खड़े हज़ूरों पाले हूनाम फ़क़ीर तिन्हां दा जो घर बैठे यार विखाले हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
फैला हुआ है दामन-ए-रहमत कितनी ख़ुश-क़िस्मत है ये उम्मतसारे गुनहगारों पर उस ने कमली का पर्द: डाला है
कामिल शत्तारी
कलाम
तू बहार-ए-हुस्न है तेरी नज़र हुस्न-ए-बहारतू नहीं तो ये गुलिस्ताँ का गुलिस्ताँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
इक तरफ़ फूले हैं लाले इक तरफ़ हैं गुल खुलेदेख ले बुलबुल तमाशा-ए-गुलिस्ताँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
हर-चंद गुलिस्ताँ में गुल-अंदाम बहुत हैंख़ुश-क़द नहीं कोई सर्व-ओ-सनोबर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू