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कलाम
ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम का सामना 'औघट' न क्यूँ कर होकि राह-ए-इश्क़ में ये मरहले हैं पहली मंज़िल के
औघट शाह वारसी
कलाम
हर-चंद गुलिस्ताँ में गुल-अंदाम बहुत हैंख़ुश-क़द नहीं कोई सर्व-ओ-सनोबर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इश्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हूहर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
हाँ ये क़ल्ब-ए-हसन की धड़कन ये ग़ुंचों की चटकरंग-ओ-बू शौक़-ओ-हया का अहद-ओ-पैमाँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
उस को ज़ाहिद काए जो लज़्ज़त न दे कुछ नफ़स कोख़ुश्क रोटी खाए ज़ौक़-ए-मुर्ग़-ओ-बिरयाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
मकीं बदले मकाँ बदला ज़मीं बदली ज़माँ बदलान बदले हुस्न-ओ-उल्फ़त हाँ ज़मीन-ओ-आसमाँ बदला
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो