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कलाम
हाफ़िज़ पढ़ पढ़ करन तकब्बर मुल्लाँ करन वडाई हूसावन माह दे बदलाँ वाँगूँ फिरन किताबाँ चाई हू ।
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अल्लाह पढ़यों हाफ़िज़ होयों न गया हिजाबों पर्द: हूपढ़ पढ़ आलिम फ़ाज़िल होयों तालिब होयों ज़र्दा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अल्लाह पढ़यों हाफ़िज़ होयों न गया हिजाबों पर्दा हूपढ़ पढ़ आलिम फ़ाज़िल होयों तालिब होयों ज़र दा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जगह रोने की है मदहोश पा कर बाग़-ए-आलम मेंमेरी ग़फ़लत पे ये ग़ुंचे भी अब हँसते हैं खिल खिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
अज़ल अबद नूँ सही कीतोसे वेख तमाशे गुज़रे हूचोदाँ तबक़ दिले दे अंदर आतश लाए हुजरे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
वो उस की क़द्र क्या जाने ख़ुदा-हाफ़िज़ मैं डरता हूँपड़ा है हाथ में लड़के के मेरे दिल का सीपारा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
तग़य्युर से बरी हुस्न-ओ-मोहब्बत की गुल अफ़्शानीगराँ गुज़री ज़माने पर ज़माना सर-गराँ बदला
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
इस दर की सख़ावत क्या कहिए ख़ाली न गया मंगता कोईमुहताज यहाँ जो आते हैं वो झोलियाँ भर के जाते हैं
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
वाहन-लेसोवै.आतिन ज़हबत आँ अहद-ए-हुज़ूर-ए-बारगह-अतजब याद आवत मोहे कर न परत दर्दा वह मदीनः का जाना
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
हर-चंद गुलिस्ताँ में गुल-अंदाम बहुत हैंख़ुश-क़द नहीं कोई सर्व-ओ-सनोबर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
तब मजनूँ का मेल होया था जब लैला कह कर रोया थावो यक-दम सेज न सोया था अब लग नेक शुमार होया