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कलाम
कामिल मुर्शिद ऐसा होवे जो धोबी वाँगूँ छट्टे हूनाल निगाह दे पाक करे न सज्जी साबण घत्ते हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
नबी वली सब उस के बराती किस में उस की बात है आती'कामिल' मेरा राज-दुलारा सब से अरफ़ा-ओ-आ'ला है
कामिल शत्तारी
कलाम
अंदर बूटी मुश्क मचाया जाँ फुल्लाँ ते आई हूजीवे मुर्शिद कामिल 'बाहू' जैं एह बूटी लाई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
'ज़हीन' अल्लाह को मैं देखता हूँ हुस्न-ए-जानाँ मेंनज़र ख़ुर्शीद के जल्वे मह-ए-कामिल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
अंदर बूटी मुश्क मचाया जाँ फुल्लाँ ते आई हूजीवे मुर्शिद कामिल 'बाहू' जैं ईह बूटी लाई हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
'ज़हीन' इस में ख़ुद उन के हुस्न-ए-कामिल की इहानत हैभला वो और मेरे इश्क़ की तौहीन फ़रमाएँ
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
अक्खीं सुर्ख़ मुँही ज़र्दी हर वल्लों दिल आहींं हूम्हाँ महाड़ ख़शबोई वाला पहुंता वंज किदाईं हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
पंजे-महल पंजाँ विच चानण डीवा कित वल धरिये हूपंजे महर पंजे पटवारी हासल कित वल भरिये हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू