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कलाम
किया बे-घाट है 'औघट' जनाब-ए-शाह-'वारिस' नेसमझ में ख़ुद नहीं आती है ऐसी अपनी मंज़िल है
औघट शाह वारसी
कलाम
शाह अली शेर-अल्ला वांगण वड्ढ कुफ़र नूँ सुटया हूदिल साफ़ी ताँ होवे जे कर कलमा लुँ-लूँ रसया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
क्या आब है क्या ताब है ऐ जौहरी आ देखआँसू हैं मिरे लाल-ओ-गौहर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
मेरा गरचे 'औघट' नाम है पर करम है 'वारिस'-ए-पाक काज़हे-शान दम में ग़नी किया कि गदा से शाह बना दिया
औघट शाह वारसी
कलाम
मैं शम-ए-फ़रोज़ाँ हूँ मैं आतिश-ए-लर्ज़ां हूँमैं सोज़िश-ए-हिज्राँ हूँ मैं मंज़िल-ए-परवानः
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
न रोता है न हँसता है न कुछ कहता न सुनता हैशराब-ए-इश्क़-ए-लैला से हुआ मदहोश यकबारा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
ज्ञान में गुनवन्त था होर ध्यान में था परम-रूपक्यूँ किया ज्ञानी हो कार-ए-ख़ाम सीता वास्ते