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कलाम
जुनून से कुछ नहीं चारा करे क्या क़ैस बेचाराबरहनः-पा बरहनः-सर फिरे है बन में आवारा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
इक तरफ़ फूले हैं लाले इक तरफ़ हैं गुल खुलेदेख ले बुलबुल तमाशा-ए-गुलिस्ताँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हर-चंद गुलिस्ताँ में गुल-अंदाम बहुत हैंख़ुश-क़द नहीं कोई सर्व-ओ-सनोबर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
तू बहार-ए-हुस्न है तेरी नज़र हुस्न-ए-बहारतू नहीं तो ये गुलिस्ताँ का गुलिस्ताँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
न मैं आलिम न मैं फ़ाज़िल न मुफ़्ती न क़ाज़ी हूना दिल मेरा दोज़ख़ ते ना शौक़ बहिश्ती राज़ी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
होर दवा ना दिल दी कारी कलमा दिल दी कारी हूकलमा दूर ज़ंगार करेंदा कलमे मैल उतारी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मैं शम-ए-फ़रोज़ाँ हूँ मैं आतिश-ए-लर्ज़ां हूँमैं सोज़िश-ए-हिज्राँ हूँ मैं मंज़िल-ए-परवानः
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
कोढ़याँ दे दुख दूर करेंदा करे शिफ़ा मरीज़ां हूहर इक मरज़ दा दारू तूँ हैं घत्त न वस्स तबीबाँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
कलमे दा तूँ ज़िकर कमावें, कलमे नाल नहावें हूअल्लाह तै-नूँ पाक करे जे ज़ाती इस्म कमावें हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
कर इबादत पच्छोतासें उमराँ चार दिहाड़े हूथी सौदागर कर लै सौदा जाँ तक हट्ट न ताड़े हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
इल्मों बाझ जे फ़क़र कमावे, काफ़िर मरे दीवाना हूसै वर्हयाँ दी करे इबादत अल्लाह थीं बेगाना हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जित्थे हू करे रौशनाई छोड़ अंधेरा वैंदा हूमैं क़ुर्बान तिनाँ तोंं 'बाहू' जो हू सहीह करेंदा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू