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कलाम
अलिफ़ अहद दित्ती विखाली अज़ ख़ुद होया फ़ानी हूक़ुर्ब विसाल मक़ाम न मंज़ल उत्थ जिस्म न जानी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
फ़ना पहला अदब है शर्त-ए-अव्वल बज़्म-ए-जानाँ मेंजो अपने आप से गुज़रें वो इस महफ़िल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
कुछ न होने के सिवा दार-ए-फ़ना कुछ भी नहींहै अगर कुछ तो यहाँ ग़ैर-ए-ख़ुदा कुछ भी नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
शम्अ' चराग़ जिन्हाँ दिल रौशन ओह क्यूँ बालन डेवे हूअक़ल फ़िकर दी पहुँच न ओथे फ़ानी फ़हम कचीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
लोक अयाणे मत्तीं देवण आशिक़ मत्त न भावे हूमुड़न मुहाल तिन्हाँ नूँ जिन्हाँ साहिब आप बुलावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु