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कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
जिस हादी थीं नहीं हिदायत ओह हादी की फड़ना हूसिर दित्तियां हक़ हासल होवे मौतों मूल न डरना हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
शौक़ दा दीवा बाल हनेरे मत लब्भे वस्त खड़ाती हूमरन थीं अग्गे मर रहे जिन्हाँ हक़ दी रमज़ पछाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
क़हर पूए ईह रहज़न दुनियाँ हक़ दा राह मरेंदी हूआशिक़ मूल क़ुबूल नून बाहो ज़ारो ज़ार रोएंदी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
नोक-ए-मिज़ा-ए-यार है नश्तर के बराबरख़ूँ-रेज़ी में अबरू भी है ख़ंजर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
तुझे मुश्किल-कुशा समझूँ न क्यूँ कर ऐ मेरे 'वारिस'तेरे हाथों से हल होते हैं उक़्दे मेरी मुश्किल के
औघट शाह वारसी
कलाम
शौक़ दा देवा बाल अंधेरे मताँ लब्भे वस्त खड़ाती हूमरण थीं उगे मर रहे जिन्हाँ हक़ दी रम्ज़ पछाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
दो-जहाँ जल्वा-ए-जानाँ के सिवा कुछ भी नहींहम ने कुछ और न देखा तो ख़ता कुछ भी नहीं''
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जिन्हाँ हक़ न हासल कीता दोहीं जहानी उजड़े हूआशिक़ ग़रक़ होवे विच वहदत वेख तिन्हाँ दे मुजरे हू