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कलाम
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
मुर्शिद ओह सहेड़िये जेहड़ा दो जग ख़ुशी दिखावे हूपहले ग़म टुकड़े दा मेटे वत रब्ब दा राह सुझावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
या-क़ाफ़ि-लती ज़ीदी अजलक रहमे बर हसरत-ए-तिश्ना-लबकमोरा जियरा लरजे दरक दरक तैबः से अभी न सुना जाना
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
वादियाँ सरशार-ए-मस्ती मय-कद: बर-दोश होंज़र्रा ज़र्रा हो अगर जन्नत-ब-दामाँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
ज़िंदगी से तंग हो मरने की ख़्वाहिश हो जिसेकह दो उस बीमार से दारू-ओ-दरमाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मुख महबूब दा ख़ाना-काबा आशिक़ सजद: कर्दे हूदो ज़ुल्फ़ाँ विच नैण मुसल्ले चार मज़हब जिथ मिलदे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
जब ख़याल आया मुझे तेरे रुख़-ए-पुर-नूर काफिर गया नक़्श: मेरी आँखों में शम्म-ए-तूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
मुज-से मरीज़ को तबीब हाथ अपना मत लगाउस को ख़ुदा पे छोड़ दो बहर-ए-ख़ुदा जो हो सो हो