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कलाम
जब ख़याल आया मुझे तेरे रुख़-ए-पुर-नूर काफिर गया नक़्श: मेरी आँखों में शम्म-ए-तूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
नैण नैणां वल तुर-तुर तकदे डिठयों बिनाँ डसीवे हूहर ख़ाने विच जानी 'बाहू' किन सिर ओह रखीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
नाल कुसंगी संग न करिए कुल नूँ लाज न लाइए हूतुंमे मूल तरबूज़ न होंदे तोड़ मक्के लै जाइये हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल केइरादा है कि रोएँ ईद के दिन भी गले मिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
शम्अ' चराग़ जिन्हाँ दिल रौशन ओह क्यूँ बालन डेवे हूअक़ल फ़िकर दी पहुँच न ओथे फ़ानी फ़हम कचीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
शाह-जिलानी महबूब सुबहानी ख़बर लयो झट कर के हूपीर जिन्हाँ दा मीराँ 'बाहू' कद्धी लग दे तर के हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
किस तरह ब-ईं हाल उसे यार मैं जानूँनादानी से ये वह्म-ओ-पिन्दार है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे