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कलाम
फ़र्श-ए-गुल पर इश्वा-ए-क़ुद्स नज़ादान-ए-चमनअर्श-ए-गुल पर जल्वः-ए-रब्ब-ए-गुलसिताँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
एह दिल हिजर फ़िराक़ों सड़या एह दम मरे न जीवे हूसच्चा राह मोहम्मद वाला जैं विच रब्ब लुभीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जित्थे हू करे रौशनाई छोड़ अंधेरा वैंदा हूमैं क़ुर्बान तिनाँ तोंं 'बाहू' जो हू सहीह करेंदा हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
किया बे-घाट है 'औघट' जनाब-ए-शाह-'वारिस' नेसमझ में ख़ुद नहीं आती है ऐसी अपनी मंज़िल है
औघट शाह वारसी
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
फ़ख़्र ये है मैं शह-ए-'वारिस' के दर का हूँ फ़क़ीरमर्तब: 'औघट' नहीं जो क़ैसर-ओ-फ़ग़्फ़ूर का
औघट शाह वारसी
कलाम
अंदर भी हू बाहर भी हू'बाहू' कथाँ लुभीवे हूसे रियाज़ ताँ कर कराहाँख़ून जिगर दा पीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
है यक़ीं उस दिल के हाथों जान एक दिन जाएगीखींच कर मक़्तल में बहर-ए-इम्तिहाँ ले जाएगा
औघट शाह वारसी
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे