आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "bazm e sukhan lucknow shumara number 001 jagishar parshad khalish magazines"
Kalaam के संबंधित परिणाम "bazm e sukhan lucknow shumara number 001 jagishar parshad khalish magazines"
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना पहला अदब है शर्त-ए-अव्वल बज़्म-ए-जानाँ मेंजो अपने आप से गुज़रें वो इस महफ़िल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
यही देखा तमाशा जा के हम ने बज़्म-ए-जानाँ मेंकहीं लाश: तड़पता है किसी जा रक़्स-ए-बिस्मिल है
औघट शाह वारसी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़