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कलाम
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह दिल हिजर फ़िराक़ों सड़या एह दम मरे न जीवे हूसच्चा राह मोहम्मद वाला जैं विच रब्ब लुभीवे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
शुस्त-ओ-शू ज़ाहिर बदन की क्या बहुत करता है शैख़साफ़ रख दिल को ज़रा वस्वास-ए-शैताँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
पियोवाँ कोलों पुत्त कुहावे भट्ठ दुनिया मक्काराँ हूतरक जिन्हाँ दुनिया थीं कीती लैसन बाग़-बहाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जगह रोने की है मदहोश पा कर बाग़-ए-आलम मेंमेरी ग़फ़लत पे ये ग़ुंचे भी अब हँसते हैं खिल खिल के
औघट शाह वारसी
कलाम
हाफ़िज़ पढ़ पढ़ करन तकब्बर मुल्लाँ करन वडाई हूसावन माह दे बदलाँ वाँगूँ फिरन किताबाँ चाई हू ।
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू