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कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
हाँ ये क़ल्ब-ए-हसन की धड़कन ये ग़ुंचों की चटकरंग-ओ-बू शौक़-ओ-हया का अहद-ओ-पैमाँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इश्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हूहर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
मैं हुस्न-ए-मुजस्सम हूँ मैं गेसू-ए-बरहम हूँमैं फूल हूँ शबनम हूँ मैं जल्वः-ए-जानानः
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
'ज़हीन' अल्लाह को मैं देखता हूँ हुस्न-ए-जानाँ मेंनज़र ख़ुर्शीद के जल्वे मह-ए-कामिल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
बुलबुलों पर कर दे ऐ सय्याद एहसाँ छोड़ देफ़स्ल-ए-गुल आई है ज़ालिम छोड़ दे हाँ छोड़ दे
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
लिबास-ए-नौ-बनौ हर दौर में बदले हैं दोनों नेन इश्क़-ए-सरमदी बदला न हुस्न-ए-जावेदाँ बदला
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू