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कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
अलिफ़ अहद दित्ती विखाली अज़ ख़ुद होया फ़ानी हूक़ुर्ब विसाल मक़ाम न मंज़ल उत्थ जिस्म न जानी हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
सो मैं अब मजनूँ वार बही प्रदेश बिदेस ख़्वार बहीइस पी अपने की यार बही अब मेरा भी ए'तिबार होया
वारिस शाह
कलाम
नाल नज़ारे रहमत वाले खड़ा हज़ूरों पाले हूनाम फ़क़ीर तिसे दा 'बाहू' घर विच यार विखाले हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
कुछ न होने के सिवा दार-ए-फ़ना कुछ भी नहींहै अगर कुछ तो यहाँ ग़ैर-ए-ख़ुदा कुछ भी नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
अक़्ल के मदरसे से उठ इश्क़ के मय-कदा में आजाम-ए-फ़ना-ओ-बे-ख़ुदी अब तो पिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
किस तरह 'तुराब' अपना कहौं हाल किसी सेजग में न कोई यार न ग़म-ख़्वार है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
आशिक़ हो ते इश्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हूसै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
'तुराब' उस शख़्स को हम नेक-ओ-ख़ुश-औक़ात कहते हैंख़ुदा की याद में जिस के कटे औक़ात हमवारा