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ग़ज़ल
इस तर्ह जुनूँ की दुनिया में जीने का सहारा करते हैंदामन के परेशाँ तारों को हम पारा-पारा करते हैं
अज़ीज़ वारसी देहलवी
ग़ज़ल
ज़ाकिर के तो हे ज़ो'म मैं मज़कूर-ए-निहां मेंआरिफ़ तो उसे देखते हैं ऐन अयाँ में
सय्यद शाह अता हुसैन
ग़ज़ल
'अफ़क़र' वारसी
ग़ज़ल
हुस्न वालों में भी अब तो हो रहे हैं तज़्किरेसुन रहे हैं आज-कल 'हैरत' कफ़न-बर्दोश है
हैरत शाह वारसी
ग़ज़ल
उस घिरी की शर्म रख ले ऐ निगाह-ए-नाज़-ए-दोस्तहर-नफ़स को जब हयात-ए-जाविदाँ समझा था मैं
जिगर मुरादाबादी
सेहरा
भली साअ'त से मालिन ने उसे नौशः के बाँधा हैख़ुदा के फ़ज़्ल से नाम-ए-रसूलल्लाह का सेहरा
बेदम शाह वारसी
शबद
ये जन्म निछावर हो जाये भगवान का प्रेम निभाने में
ये जन्म निछावर हो जाये भगवान का प्रेम निभाने मेंये रसना निशि दिन मस्त रहे श्री ईश्वर के गुण गाने में