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ग़ज़ल
मैं एक नज़र से आसूद: अपनी ख़ल्वत में बैठा हूँऐ जल्वः-ए-हर-सू-ए-फ़ित्रत तू ने मुझे रुस्वा कर न दिया
सीमाब अकबराबादी
सोरठा
कहि अधिकारी भाव श्री गुरु ग्यांन प्रताप तैं
कहि अधिकारी भाव श्री गुरु ग्यांन प्रताप तैंपुनि आनंद गुनाव भगवान भाषिये हरषसौं
स्वामी भगवानदास जी निरंजनी
पद
गुन अजब नामः - रंग्यौ मन पीव कैं रंगा न मोरौं जरत पुनि अंगा
रंग्यौ मन पीव कैं रंगा न मोरौं जरत पुनि अंगासखी सुनि राह बहु बारीक चलनां रोज़ सब तारीक
वाजिदजी दादूपंथी
कुंडलिया
यहु बरियां बहुरयौ नहीं हा हा हूँ बलि कंत वे
पुनि साथी संग कोइ इक संग न साथी काम हाथीक्रिश्न करूँ अपनैं गुही
वाजिदजी दादूपंथी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ क़िब्लः-ए-ईमान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन
ऐ क़िब्लः-ए-ईमान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ का'बः-ए-ईक़ान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन
लताफ़त हुसैन वारसी
कुंडलिया
तन तरवर मन पंखि वे भयौ बसेरा आइ वे
इक बिरह सलिता बहूँ बौरी रहौं क्यूँ बिन पीव वेलोहू पानी ह्वै गया पुनि तालावेली जीव वे
वाजिदजी दादूपंथी
साखी
प्रसिध्द साधु का अंग - तन मन धक्का देत है पुनि धक्का पंच भूत
तन मन धक्का देत है पुनि धक्का पंच भूत'रज्जब' इन में ठाहरै सो आतम अबधूत
रज्जब
पद
एक दाना फड़ ज़मीं के अंदर उस से एक दरख़्त हुआ
एक दाना फड़ ज़मीं के अंदर उस से एक दरख़्त हुआफिर बर्ग हुआ और शाख़ हुआ फिर बार-आवर हो पुख़्त हुआ
संत कवि दिलदार
ग़ज़ल
दिल अपना मैं ने सदक़े कर दिया है जिस की नज़रों परक़यामत है कि उस से इक नज़र देखा नहीं जाता