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ग़ज़ल
ज़े-नहनु-अक़्रब दोस्ताँ नज़दीक-ए-शह-रग पाओगेआँ-कि याबी नफ़्स-ए-ख़ुद इरफ़ाँ में और क्या बार है
किशन सिंह 'आरिफ़'
कलाम
दीन और दुनिया के झगड़े से जो दी मुझ को नजातये बड़ा ऐ हज़रत-ए-इश्क़ आप ने एहसाँ किया
औघट शाह वारसी
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गूजरी सूफ़ी काव्य
नौ-खंड और जे असमाँ आहे
नौ-खंड और जे असमाँ आहेसब पीव छत थीं छत्ता हुआ है
शाह अली जीव गामधनी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-दिल सिपर-ए-दाग़-ए-जुनूँ को ले करयूँ बर-ए-इश्क़ जिगर-ख़्वार उठे और बैठे
अ’ब्दुर्रहमान एहसान देहलवी
गूजरी सूफ़ी काव्य
फूल और माली
तूँ घर घर 'शह' हो आवे हवा लैल कलियों रावेजग तेरे सुहाग खुंदावे
शाह अली जीव गामधनी
ग़ज़ल
ऐ 'नियाज़' अपने तो जो कुछ हो तुम्हीं हो बस फ़क़तहज़रत-ए-इश्क़ आप हो और आप दामल्लाह हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सलाम-ए-मोहब्बत
क़िस्सः-ए-'मारूफ़' ग़मगीं ऐ सबादार साँ दर हज़रत-ए-सुल्तान-ए-मा
मारूफ़ शाह वारसी
ग़ज़ल
होती हैं ग़ुस्से में चार आँखें तो उन से 'बेनज़ीर'वर्नः वो आँखें दिखाते और हज़रत देखते
बेनज़ीर शाह वारसी
ग़ज़ल
दूर कर दिल से दग़ा और मुझ से मिल जा बे-हिजाबहै तेरी हिजरत से हर-दम इंतिज़ारी साफ़ साफ़
किशन सिंह 'आरिफ़'
फ़ारसी कलाम
दोश चश्म-ए-जानम अज़ दीदार-ए-शह पुर-नूर बूदमुतरिब-ए-मा ज़ोहरः-ओ-साक़ी-ए-मजलिस हूर बूद