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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बर ऊद-ए-दिलम नवाख़्त यक ज़मज़मः इश्क़
बर ऊद-ए-दिलम नवाख़्त यक ज़मज़मः इश्क़ज़ाँ ज़मज़मः-अम ज़े-पा-ए-ता-सर हम: इश्क़
मुल्ला जामी
मनक़बत-ना'त
है जो आक़िल जानता है ख़ूब ख़ालिक़ को 'अमीर'ख़िल्क़त-ओ-मेहर-ओ-मह-ओ-अर्ज़-ओ-समा को देख कर
अमीर मीनाई
पद
पहले मया-मोह को छोड़ के हर से मारे मने को
पहले मया-मोह को छोड़ के हर से मारे मने कोपेम की आग लगाए के ऐ 'दिलदार' जलावे तन को
संत कवि दिलदार
फ़ारसी कलाम
मन शराब-ए-इश्क़ रा पैमान:अम ऐ आशिक़ाँआँ परी रा दीदम-ओ-दीवान:अम ऐ आशिक़ाँ
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती
ग़ज़ल
पहुँचा है जब से इश्क़ का मुझ को सलाम-ए-ख़ासदिल के नगीं पे तब से खुदाया है नाम-ए-ख़ास