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कलाम
बे-अदबाँ न सार अदब दी गए अदब थीं वांजे हूजेहड़े होण मिट्टी दे भांडे कदी न थीवण कांजे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
ग़ज़ल
क्या तसर्रुफ़ है तिरे हुस्न का अल्लाह अल्लाहजल्वे आँखों से उतर कर दिल-ओ-जाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
इ'श्क़-बाज़ी-ओ-जवानी-ओ-शराब-ए-ला'ल-फ़ाम
सफ़-नशीनाँ नेक-ख़्वाह-ओ-पेशकाराँ बा अदबदोस्त-दाराँ साहिब-ए-सिर्र-ओ-हरीफ़ाँ दोस्त-काम
हाफ़िज़
नज़्म
हुआ फिर शीअः-ओ-सुन्नी में झगड़ा
हुआ फिर शीअः-ओ-सुन्नी में झगड़ाज़मीं से चर्ख़ तक पहुँचा क़ज़ियः
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-हसरत-ओ-ग़म से जिगर में दाग़ रखता हूँमिरे गुलशन की ज़ीनत दौर-ए-हंगाम-ए-ख़िज़ाँ तक है
मीर वली वारिसी
कलाम
फ़ना पहला अदब है शर्त-ए-अव्वल बज़्म-ए-जानाँ मेंजो अपने आप से गुज़रें वो इस महफ़िल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
दोहा
'औघट' रहो प्रेम के भगती जब तक घट में प्राण
'औघट' रहो प्रेम के भगती जब तक घट में प्राणपूजा करो कृष्ण का और जमुना में अश्नान
औघट शाह वारसी
फ़ारसी कलाम
महव शुदम ब-पेश-ए-तू ता कै असर न-मांदमशर्त-ए-अदब चुनीं बुवद शम्स-ए-मन-ओ-ख़ुदा-ए-मन