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दोहा
जमला ऐसी प्रीत कर ज्यूँ बालक की माय
जमला ऐसी प्रीत कर ज्यूँ बालक की मायमन लै राखै पालणै तन पाणी कूँ जाय
जमाल
दोहा
या तन की सार्रैं करूँ प्रीत जु पासे लाल
या तन की सार्रैं करूँ प्रीत जु पासे लालसतगुरु दाँव बताइया चोपर रमे 'जमाल'
जमाल
पद
ब्रजभाव के पद - अपनी गरज हो मिटी साँवरे हम देखी तुमरी प्रीत
ठोर ठोर रस लेत फिरत हो फूल भँवर की सी रीतमीराँ के प्रभू गिरिधर नागर प्रभू चरण पर प्रीत
मीरा
पद
ब्रजभाव के पद - प्रीत निभाना रे काना प्रीत निभाना ए-जी म्हाँने बिसर नहि जाना
जब से थारे म्हारे प्रीत लगी है नित बरसाने आनादूर परे को पास जान के अध बीच नहिं छिटकाना
मीरा
पद
गर आशिक़ सादिक़ है उस का मत उल्फ़त तू ग़ैर से जोड़
गर झिड़के या मार निकाले चौखट को उस के मत छोड़ऐ 'दिलदार' अगर है आक़िल ग़ैर की प्रीत को दिल से कोड़
संत कवि दिलदार
पद
जोगी के पद - जोगिया से प्रीत कियाँ दुख होई
जोगिया से प्रीत कियाँ दुख होईप्रीत कियाँ सुख ना मोरी सजनी जोगी मिनत न कोई
मीरा
पद
प्रीत की रीत कठण निभाना
प्रीत की रीत कठण निभानाये जग मो कोई नहीं है अपना मन मिले प्रित काहु करना
देवनाथ महाराज
अरिल्ल
गीत किवत सलोक प्रबंध बखानिये
गीत किवत सलोक प्रबंध बखानियेतिन में हरि को नाम निरंतर आंनिंये
वाजिदजी दादूपंथी
दोहा
तन मीटे मन वार दे यही प्रीत की आन
तन मीटे मन वार दे यही प्रीत की आनजो अपना आपा तजे सो वा का दासी जान
मुज़्तर ख़ैराबादी
सवैया
मुस्कान माधुरी - कातिग क्वार के प्रात ही प्रात सरोज किते बिकसात निहारे
कातिग क्वार के प्रात ही प्रात सरोज किते बिकसात निहारेडीठी परे रतनागर के दरके बहु दाड़िम बिम्ब बिचारे