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ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिमकि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना
'मज़हर' मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
'मज़हर' छुपा के रख दिल-ए-नाज़ुक को अपने तूये शीशा बेचना है किसी मीरज़ा के हाथ
'मज़हर' मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ मोइनुद्दीन
मज़हर-ओ-जलवः-गाह-ए-नूर-ए-क़दमआफ़्ताब-ए-जहाँ मोइनुद्दीन
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी कलाम
ऐ कि दर ज़ाहिर मज़ाहिर आश्कारा कर्द:ईसिर्र-ए-पिन्हान-ए-हुवीयत रा हुवैदा कर्द:ई
मन्सूर हल्लाज
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मन आँ रोज़ बूदम कि अस्मा न-बूद
निशाँ गश्त मज़हर सर-ए-ज़ुल्फ़-ए-यारहनूज़ आँ सर-ऐ-जुल्फ़-ए-ज़ेबा न-बूद
मौलाना रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हिकायत-ए-मोबिद-ए-हिन्दु कि मा'रिफ़त याफ़्त
ऐ के मुसलमानी-ओ-गबरीत नीस्तचश्म-ए-तोरा क़त्र:-ए-अबरीत नीस्त
निज़ामी गंजवी
ग़ज़ल
अर्ज़ किया और क्या जौहर कोई ज़ाहिर कोई मज़हरमुहक़क़िक़ कहते हैं उन सब को इस दिलदार की सूरत
शाह रुकनुद्दीन 'इश्क़'
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दर ता'लीम-ए-तय-ए-मा'रिफ़त
बसा पीर-ए-मुनाजाती कि बर मरकब फ़िरो माँदबसा रिंद-ए-ख़राबाती कि ज़ीन बर शेर-ए-नर बंदद
हकीम सनाई
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मतला-ए’-ख़ुर्शीद-ए-ईमानस्त ज़ाँ सीमा-ए-मन
हेच मी-दानी चे देवा मज़्हर-ए-रहमानी अस्तमर सख़ा-ए-आ’लमीन-ओ-मामन-ए-मल्जा-ए-मन
लताफ़त हुसैन वारसी
ग़ज़ल
बेल में बूटे में फल में पत्तियों में फूल मेंहर चमन में उस का मज़हर है कहाँ मिलता नहीं
मोहम्मद अकबर वारसी
फ़ारसी कलाम
गुफ़्ता ब-सूरत अर चे ज़े औलाद-ए-आज़रमअज़ रूए मर्तबा ब-हम: हाल बर-तरम
'मज़हर' मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
फ़ारसी कलाम
ग़ुलाम-ए-इश्क़म व लुत्फ़-ओ-करम बहा-ए-मन अस्तकसे कि बन्द: ब-ख़्वानद मरा ख़ुदा-ए-मन अस्त