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ग़ज़ल
इब्राहीम 'आजिज़'
गूजरी सूफ़ी काव्य
साध उठे यूँ प्यारन मुज कूँ
साध उठे यूँ प्यारन मुज कूँभेस करे कर आपस रोऊँ
शाह अली जीव गामधनी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
नीस्त जुज़ आहंग-ए-इश्क़ आवाज़-ए-मौसीक़ार-ए-मन
हम-चू दरिया-ए-मुहीत ऐ क़तरा-अम शुद मौज-ज़नचू ब-ख़ुद ग़रक़म नमूद आँ क़ुल्ज़ुम-ए-ज़ख़्ख़ार-ए-मन
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
सिर्फ़ धोके के लिए नक़्श-ए-सराब-ए-दहर हैइस से सब प्यासे गए ये मौज-ए-दरिया है भी क्या
मुज़्तर ख़ैराबादी
सवैया
प्रेम-वेदना - मोहन सो अटक्यौ मनु री कल जाते परै सोई क्यौ न बतावै
मोहन सो अटक्यौ मनु री कल जाते परै सोई क्यौ न बतावैव्याकुलता निरखै बिन मूरति भागति भूख न भूपन भावै
रसखान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
इशारात ब-ख़राबातियान
कि दर सहरा-ए-ऊ आलम-सराब-अस्तख़राबाती-अस्त बे-हद्द-ओ-निहायत