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नज़्म
आदमी-नामः
दौड़े हैं आदमी ही तो मशअ'ल जला के राहऔर ब्याहने चढ़ा है सो है वो भी आदमी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मदीह-ए-ख़ैरुल-मुरसलीन
रुख़-ए-अनवर का तिरे ध्यान रहे बा'द-ए-फ़नामेरे हमराह चले राह-ए-अदम में मशअ'ल
मोहसिन काकोरवी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़ुसरव व शीरीं
अगर आँ बाद आयद व गर नायद इमरोज़तू बर बाद-ए-चुनीं मशअ'ल म-यफ़रोज़
निज़ामी गंजवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आँ रूह रा कि इश्क़-ए-हक़ीक़ी शिआ'र नीस्त
नज़्ज़ारः गर म-बाश दरीं राह मुंतज़िरवल्लाह कि हेच मर्ग बतर ज़े-इंतजार नीस्त
मौलाना रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ हमः इंसाफ़-जूयाँ बंदः-ए-बेदाद तू
बिल-फ़ज़ूलाँ रा सू-ए-तू राह न-बूद ता बुवदकिब्रिया दर बादबाँ राएगाँ आबाद तू
हकीम सनाई
पद
अव्वल मंज़िल है तालिब के चलने को राह शरीअ'त की
वाजिब है फिर लाना उस हादी से रुजूअ' तबीअ'त कीपावेगा ऐ 'दिलदार' तब इस हालत में राह हक़ीक़त की
संत कवि दिलदार
फ़ारसी कलाम
बर 'नियाज़' ऐ दोस्ताँ अज़ बे-नियाज़ी शिक्वः नीस्तज़ाँ कि दर ख़्वेशम सरापा राह-ओ-रस्म-ए-ख़ु-ए-ऊस्त
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
पद
जिस भी राह में ज़ाहिद तूने हाथी अपना हूला है
जिस भी राह में ज़ाहिद तूने हाथी अपना हूला हैवो नहीं राह है जानो इस को तू तो भटका भूला है
संत कवि दिलदार
ग़ज़ल
कामिल शत्तारी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हर शब मनम ज़े-हिज्र-परेशाँ-ओ-दीदाः-तर
ख़ल्क़े ब-राह मुंतज़िरत जाँ सपुर्दः-अन्दऐ तुर्क-ए-मस्त दार-ए-अनान रा कशीदः-तर
अमीर ख़ुसरौ
पद
पिया मिले की राह बताओ पूछा आशिक़ तन से
हमा-हमी की राह को छोड़ो याद करो तब मन सेमिलेगा ऐ 'दिलदार' तुम्हें मन-मोहन ऐसे जतन से
संत कवि दिलदार
ग़ज़ल
ऐ शैख़ क़दम रखियो न इस राह में ज़िन्हारहै सुब्हः-शिकन रिश्तः-ए-ज़ुन्नार-ए-मोहब्बत