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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मंतिक़-उत-तैर - दर सिफ़त-ए-वादी-ए-इश्क़ गोयद
लहज़:ई न काफ़िरी दानद न दींज़र्र:ई न शक शनासद न यक़ीं
शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अज़ आँ गुलशन गिरफ़्तम शम्मः-ई बाज़
तअम्मुल कुन बचश्म-ए-दिल यकायककि ता बर खेज़द अज़ पेश-ए-तू ईं शक
मह्मूद शबिस्तरी
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ग़ज़ल
मुफ़्त में अंगुश्त-नुमा करते हो आलम में अबसदोस्त-ए-नादाँ सेती बे-शक दुश्मन-ए-दाना है ख़ूब
शाह तुराब अली दकनी
ग़ज़ल
लिबास-ए-ज़ाहिरी पर मय से बे-शक दाग़ पड़ते हैंमगर पीने से अंदर क़ल्ब के धब्बे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
अहदन समदन जान-ए-जहाँ है हम ने जाना ला-शक बे-शकजान है अब मेरी जान-ए-जहानी ला-सानी सुब्हान-अल्लाह
मरदान सफ़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
क़िस्सः-ए-कूदके कि दर पेश-ए-ताबूत-ए-पिदर मी-नालीद व सुख़न-ए-हूजी
ईं निशानि-हा कि गुफ़्त ऊ यक-ब-यकख़ान:-ए-मा रा-अस्त बे-तर्दीद-ओ-शक
मौलाना रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सवाल - कि शुद बर सिर्र-ए-वहदत वाक़िफ़ आख़िर
हर आँ कू कर्द हासिल ईं तहारातशवद बे-शक सज़ावार-ए-मुनाजात
मह्मूद शबिस्तरी
ग़ज़ल
'अज़ीज़'-ए-ख़स्तः-जाँ से कुछ इलाक़: उन को है बे-शकलिया करते हैं ज़ेर-ए-लब ये नाम आहिस्तः आहिस्तः
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
मनक़बत-ना'त
पढ़ा संग-रेज़े ने कलमः क़मर शक़ था इशारों मेंनबी का मो'जिज़ा शान-ए-ख़ुदा मालूम होता है
संजर ग़ाज़ीपुरी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सवाल - क़दीम-ओ-मोहदिस अज़ हम चूँ जुदा शुद
चु शक दारी दराँ कीं चूँ ख़याल-अस्तकि बा वहदत दुई ऐ'न-ए-ज़लाल-अस्त